What does zero mean?
Nothing, just completely empty. When a person comes into this world, when a child is born, then it too is completely empty, no hatred from anyone, no jealousy, no greed, no pride of anything.
That is why children are considered to be the form of God.
But with age man forgets all these qualities and starts doing wrong things.
On seeing one's progress, one becomes envious, fills with the greed of wealth and many worldly things. And if he gets more money then he does not consider God ahead of him, he becomes arrogant.
On seeing one's progress, one becomes envious, fills with the greed of wealth and many worldly things. And if he gets more money then he does not consider God ahead of him, he becomes arrogant.
from zero to infinty - a unique journey |
On the other hand, Infinite means never ending or which has no end.
God is infinite, there is no end to it. When none of us came into this world it was then, still is and always will be. No one could get its end till today.
We are part of that infinite, the sense that we are all children of God. But we all forget him and are busy with some other tasks but still God keeps us all, he never gets angry with us.
Now the question is, how can we decide the journey from zero to infinity?
So the answer is that man should surrender himself to God and should think of himself as zero and should never be arrogant or proud of his position or knowledge.
Rather, we should always indulge ourselves in devotion to that infinite immense God. With this, we will be able to successfully travel from zero to infinity. These qualities can make us reconcile with that unique power.
That's all for today. Hope you like it.
Thank you.
Hindi Translation - हिंदी अनुवाद
शून्य से अनंत तक - एक अद्वित्य सफ़र
शून्य का मतलब क्या है ?
कुछ नहीं, बिलकुल खाली । इंसान जब इस दुनिया में आता है जानिके जब एक बच्चा जन्म लेता है तब वह भी बिल्कुल खाली होता है किसी से कोई वैर नहीं, किसी से कोई ईर्ष्या नहीं, कोई लालच नहीं होता, किसी चीज़ का अभिमान भी नहीं। इसीलिए तो बच्चों को भगवान का ही रूप माना जाता है।
परन्तु आयु के साथ मनुष्य इन सब गुणों को भूलकर ग़लत काम करने लग जाता है।
किसी की प्रगति को देखकर ईर्ष्यालु हो जाता है,धन और कई सांसारिक वस्तुओं का लालच अपने मन में भर लेता है। और तो और अगर उसके पास ज़्यादा धन आ जाए तो फिर तो वह भगवान को भी अपने आगे कुछ नहीं समझता, अभिमानी-अहंकारी बन जाता है।
किसी की प्रगति को देखकर ईर्ष्यालु हो जाता है,धन और कई सांसारिक वस्तुओं का लालच अपने मन में भर लेता है। और तो और अगर उसके पास ज़्यादा धन आ जाए तो फिर तो वह भगवान को भी अपने आगे कुछ नहीं समझता, अभिमानी-अहंकारी बन जाता है।
वहीं दूसरी ओर अनंत का मतलब है जो कभी भी न खत्म हो या जिसका कोई अंत न हो।
भगवान अनंत है उसका कोई अंत नहीं। जब हम में से कोई भी इस दुनिया में नहीं आया था वह तब भी था , अब भी है और हमेशा रहेगा। उसका अंत कोई भी नहीं पा सका है आज तक।
हम उस अनंत का ही अंश है , इसका भाव कि हम सब ईश्वर के बच्चे हैं। पर हम सब उसे भुला कर कुछ और ही कार्यों में व्यस्त रहते हैं लेकिन फिर भी ईश्वर हम सबको पालते हैं वो कभी हमसे नाराज़ नहीं होते।
अब सवाल यह है कि शून्य से अनंत तक का सफ़र कैसे तय कर सकते हैं ?
तो इसका उत्तर यही है कि मनुष्य को खुद को परमात्मा के आगे समर्पण कर खुद को शून्य के समान समझना चाहिए और कभी भी अपने पद या ज्ञान का अहंकार या अभिमान नहीं करना चाहिए।
बल्कि हमें खुद को हमेशा उस अनंत अपार परमेश्वर की भक्ति में लीन रखना चाहिए। इसी से हम शून्य से अनंत तक का सफ़र सफलतापूर्वक तय कर पाएंगे। यही गुण हमें उस अद्वित्य शक्ति से मिलाप करा सकते हैं।
आज के लिए बस इतना ही। आशा है कि आपको यह पसंद आएगा।
धन्यवाद।
Great
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